और, तुम रूठ जाती हो
हम डोर पतवार की तरह
चलते हैं साझे साझे
क्यों शोख हवाओं के बीच
तन जाते हैं हमारे रिश्ते...
कुछ और कहना चाहता हूँ ,
तुम कुछ और समझ जाती हो
फिर, तुम मुझसे रूठ जाती हो....
चलते हैं साझे साझे
क्यों शोख हवाओं के बीच
तन जाते हैं हमारे रिश्ते...
कुछ और कहना चाहता हूँ ,
तुम कुछ और समझ जाती हो
फिर, तुम मुझसे रूठ जाती हो....
ऐसा नहीं की सारी दिक्कत
तुम्हारे समझने में है,
और मेरी कोई ऐठन नहीं ,
मैं भी कभी उन्मुक्ता की डोर पकडे ,
तुम्हारी आगोश से दूर आ जाता हूँ
जानता हूँ तुम वहीँ बैठे ,
कर रही हो इंतज़ार मेरा
और आँखें तकती होंगी,
बेचैन एकटक राह मेरा
कैसे कहूँ तुम बंधन नहीं मुक्ति हो ....
और क्या करूँ ....
जब तुम रूठ जाती हो....
तुम्हारे समझने में है,
और मेरी कोई ऐठन नहीं ,
मैं भी कभी उन्मुक्ता की डोर पकडे ,
तुम्हारी आगोश से दूर आ जाता हूँ
जानता हूँ तुम वहीँ बैठे ,
कर रही हो इंतज़ार मेरा
और आँखें तकती होंगी,
बेचैन एकटक राह मेरा
कैसे कहूँ तुम बंधन नहीं मुक्ति हो ....
और क्या करूँ ....
जब तुम रूठ जाती हो....
आज एक कसक जो
तुम्हारी बातों में झलक रहा था
न जाने चुराती आँखों से
क्या कह रहा था ,
वैसे ज्यादा शब्द कहती भी नहीं
तुम्हारी आँखें
वो तो बस एहसास कराती हैं
तुम्हारे होने का ....
कहने और न कहने के बीच,
ये तुम क्या बताती हो ,
समझ नहीं पता मै ....
और तुम रूठ जाती हो.............
तुम्हारी बातों में झलक रहा था
न जाने चुराती आँखों से
क्या कह रहा था ,
वैसे ज्यादा शब्द कहती भी नहीं
तुम्हारी आँखें
वो तो बस एहसास कराती हैं
तुम्हारे होने का ....
कहने और न कहने के बीच,
ये तुम क्या बताती हो ,
समझ नहीं पता मै ....
और तुम रूठ जाती हो.............
नवीन "नव"
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